बिहार सरकार के जातीय जनगणना के फैसले को सुप्रीम कोर्ट मे चुनौती दी गयी है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर दाखिल याचिका स्वीकार कर ली है और 20 जनवरी को सुनवाई होनी है। याचिका मे जातीय जनगणना को संवैधानिक ढांचे के विरुद्ध बताया गया है। सुप्रीम कोर्ट मे नालंदा निवासी अखिलेश कुमार की ओर से याचिका दायर की गई है। याचिका में राज्य सरकार की अधिसूचना को इस आधार पर रद्द करने की मांग की गई है कि जनगणना का विषय संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची 1 में आता है और केवल केंद्र के पास जनगणना करने की शक्ति है।
याचिका मे आगे कहा गया है कि जनगणना अधिनियम 1948 जाति आधारित जनगणना पर विचार नहीं करता है। याचिकाकर्ता ने राज्य सरकार की अधिसूचना को “संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन” बताते हुए चुनौती दी है। बिहार सरकार ने इस साल 7 जनवरी को जाति सर्वे शुरू किया था। पंचायत से लेकर जिला स्तर तक के सर्वे में मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से प्रत्येक परिवार का डाटा डिजिटल रूप से संकलित करने की योजना है।
जनगणना के दौरान दो स्थानो पर निवास करने वाले लोगो से एक जगह से ही जानकारी साझा करने को कहा गया है। सरकार की तरफ से जानकारी को सत्यापित किया जाना है। पहले चरण की जनगणना 7 जनवरी से शुरू हो गयी है। दूसरा चरण 1 अप्रैल 2023 से शुरू होगा, जिसमे अधिकारी घर-घर जाकर जानकारी का स्त्यपन करेंगे।
बिहार सरकार के जातीय जनगणना के फैसले को लेकर किसी भी राजनीतिक दल ने अभी तक कोई प्रतिक्रीया नहीं दी है। कुछ डीनो पहले सत्ता मे नितीश कुमार के साथ रही विपक्षी दल भाजपा की तरफ से अभी तक कोई औपचारिक बयान नहीं आया है।