• December 14, 2023
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अब हर साल मानसून में कुछ ना कुछ नया देखने को मिलता है। कभी समय से पहले आ जाता है तो कभी वैज्ञानिकों के पूर्वानुमानों को झुठला देता है। इसमें एक बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन को माना जाता है, लेकिन इनमें कुछ और कारण हैं जो सामने आए हैं जैसे ग्लेशियर का पिघलना या फिर समुद्र का जलस्तर बढ़ना इन सब के बीच अल-नीनों की प्रासंगिकता बढ़ जाती है।

नए कारकों का अभी क्लाइमेट मॉडल में प्रयोग सीमित है। इसकी वजह से मानसून पूर्वानुमान में अपेक्षित सटीकता नहीं प्राप्त होती है। सटीक पूर्वानुमान में नए कारकों की पहचान और उनको जलवायु माडल में शामिल करने के लिए विज्ञान एंव प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) ने सेंटर एक्सीलंस स्कीम के तहत इलाहाबाद विश्वविद्यालय के वायमंडलीय एंव समुद्र विज्ञान केंद्र को महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट सौंपा गया है। इसके प्रधान अन्वेषक केंद्र के प्रमुख प्रो. सुनीत द्विवेदी सहित पांच वैज्ञानिकों को शामिल किया गया है। विज्ञानिकों का यह दल आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस, मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग जैसी तकनीकियों के प्रयोग से मानसून का कम से कम एक सीजन पहले सटीक पूर्वानुमान की प्रणाली विकसित करेंगे।

डीएसटी द्वारा सौंपे गए इस पांच वर्षीय प्रोजेक्ट के तहत उच्च स्तरीय गणना के लिए एक हाई परमारमेंस कंप्यूटर क्लस्टर भी स्वीकृत हुआ है। छह करोड़ के इस प्रोजेक्ट में साढ़े तीन करोड़ रुपये इस कंप्यूटर क्लस्टर के लिए ही दिया गया है। केंद्र प्रमुख प्रो. सुनीत द्विवेदी के साथ सह अन्वेषक प्रो. जयंत त्रिपाठी, सुधीर कुमार सिंह, डॉ. विवेक कुमार पांडेय, डॉ. शैलेंद्र यादव भी प्रोजेक्ट में शामिल हैं।

प्रो. सुनीत द्विवेदी ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के चलते मानसून चक्र में परिवर्तन, उसमें आ रहे बदलावों एवं उसके सटीक पूर्वानुमान प्रणाली की विकसित करने के साथ ही आने वाले वर्षों में मानसून में बदलाव के चलते होने वाली बीमारियों और कृषि उत्पादन की दर पर पड़ने वाले प्रभाव का भी अध्ययन करेंगे। यह केंद्र आपदा प्रबंधन और वाटर रिसोर्स मैनेजमेंट के लिए भी कार्य करेगा और सरकार को नीतिगत सूचनाएं प्रदान करने में मदद करेगा। प्रो. सुनीत के अनुसार सैद्धांतिक रूप से एक सीजन पूर्व 80 फीसदी सटीकता का पूर्वानुमान संभव है। इसमें अल-नीलो सदर्न आक्सीलेशन (ईएनसओ) के आधार पर मानसून का 50 प्रतिशत तक पूर्वानुमान किया जा सकता है। अल-नीनों वर्ष के दौरान माना जाता है कि मानसून कम होगा पर ऐसा नहीं हो रहा है।

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