
TET mandatory for Teachers: कुछ दिन पहले ही यूपी में काफी तादाद में प्राथमिक स्कूलों को बंद किया गया था और अब फिर से शिक्षकों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। सु्प्रीम कोर्ट ने देशभर के सभी जूनियर और प्राइमरी के शिक्षकों के लिए TET यानि शिक्षक पात्रता परीक्षा को अनिवार्य कर दिया है। इसके लिए शीर्ष अदालत ने दो साल समय भी दिया है। परीक्षा नहीं पास करने वाले शिक्षकों को इस्तीफा देना पड़ेगा या फिर रिटायरमेंट लेना पड़ेगा। कोर्ट के इस आदेश का नई भर्ती और प्रमोशन में भी दिखेगा।
महाराष्ट्र के एक मामले पर सुनवाई करते हुए जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने कहा कि प्राथमिक और जूनियर कक्षाओं को पढ़ाने वाले यानी कक्षा एक से आठ तक के शिक्षकों को दो साल में टीईटी (शिक्षक पात्रता परीक्षा) पास करनी होगी नहीं तो उनकी नौकरी चली जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने उन वरिष्ठ शिक्षकों को बड़ी राहत दी है जिनके सेवानिवृत्ति तक 5 साल से कम समय बचा है। इन शिक्षकों को टीईटी परीक्षा देने की आवश्यकता नहीं होगी और वो सामान्य प्रक्रिया के अनुसार अपनी सेवा समाप्त कर सकते हैं।

बेंच ने साफ कहा कि जिन शिक्षकों की नियुक्ति RTE यानि Right to Education एक्ट लागू होने से पहले हुई थी और जिनके पास 5 साल से अधिक सेवा शेष है, उन्हें अगले दो साल के भीतर टीईटी पास करना अनिवार्य होगा। अगर शिक्षक दो साल के भीतर पास नहीं करते हैं तो उन्हें सेवा से इस्तीफा देना पड़ सकता है या उन्हें अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किया जा सकता है। हालांकि, ऐसे मामलों में शिक्षकों को उनके सभी अंतिम लाभ जैसे ग्रेच्युटी और पेंशन प्राप्त होंगे, बशर्ते वो आवश्यक न्यूनतम सेवा अवधि पूरी कर चुके हों। यदि सेवा अवधि पूरी नहीं है, तो संबंधित विभाग से विचार करने के लिए प्रतिनिधित्व किया जा सकता है।

इसके अलावा कोर्ट ने प्रमोशन पर भी स्पष्ट रूप से कहा है कि नियुक्ति चाहने वाले और प्रमोशन चाहने वाले शिक्षक टीईटी पास करें, अन्यथा उनके उम्मीदवार होने पर विचार करने का कोई अधिकार नहीं होगा। व्यावहारिक कठिनाइयों और जमीनी वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए, कोर्ट ने अनुच्छेद 142 यानि अपनी असाधारण शक्तियो का प्रयोग करते हुए ये दिशा-निर्देश जारी किया है। वहीं, पीठ ने अल्पसंख्यक संस्थानों को लेकर साफ कर दिया कि ये फैसला उनपर नहीं लागू होगा। पीठ ने 2014 के संविधान पीठ के उस फैसले पर संदेह जताया है, जिसमें कहा गया था कि अल्पसंख्यक संस्थानों पर RTE अधिनियम लागू नहीं होता है। इस संदर्भ में कोर्ट ने मामला एक बड़ी पीठ के समक्ष भेजने का आदेश दिया है।