परेड मैदान में सीएम योगी के साथ संवाद शुरू होने के बाद अखाड़ा परिषद के एक धड़े के महामंत्री और पंच निर्मोही अखाड़े के सचिव महंत राजेंद्र दास के तल्ख अंदाज ने आग में घी का काम किया। महंत राजेंद्र दास ने सीएम के सामने भूमि सुविधाओं की बात करने से पहले अखाड़ों में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा दिया। उनका कहना था कि इससे पहले अखाड़ा परिषद के जो भी अध्यक्ष रहे वह लूट-खसोट और भ्रष्टाचार में ही लिप्त रहे। उन्होंने सनातन संत परंपरा को आगे बढ़ाने के बजाय सिर्फ निजी स्वार्थ की सिद्धि की और लूट-खसोट का काम किया हैं।
महंतों ने शांत कराया माहौल
महंत यमुनापुरी और अन्य संत भी शोर-शराबे का हिस्सा बने रहे। अंत में महंत हरि गिरि और महंत प्रेम गिरि ने समझा बुझाकर किसी तरह दोनों गुटों के संतों को शांत कराया। हालांकि, बैठक के दौरान इस तरह की तल्खी और आरोप-प्रत्यारोप को लेकर सीएम ने भी बाद में नसीहत दी। उनका कहना था कि संतों को सोच समझ कर बोलना चाहिए, ताकि सनातन की गरिमा बनी रहे।
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महामंत्री महंत हरि गिरि ने उनका हाथ पकड़कर बैठा दिया और संयम बरतने की सलाह दी। इसके बाद जब सीएम का संबोधन पूरा हुआ और वह सभागार से बाहर निकलने लगे, उसी समय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी महंत राजेंद्र दास और उनके गुट के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी (महानिर्वाणी) के पास पहुंच गए।
उनका कहना था कि किसने कितनी धनराशि महंत नरेंद्र गिरि और महंत ज्ञानदास को दी है, हिम्मत हो तो बताओ। वह धनराशि पाई- पाई चुकता कर दी जाएगी। परिषद के अध्यक्ष ने कहा कि सीएम की बैठक में प्रदेश भर के अफसरों की मौजूदगी में अखाड़े के शीर्ष और ब्रह्मलीन पदाधिकारियों पर इस तरह के मनगढ़ंत आरोप लगाकर संत समाज की छवि धूमिल की जा रही हैं।
उन्होंने अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रहे महंत नरेंद्र गिरि और महंत ज्ञानदास के कार्यकाल में अखाड़ों से हुई वसूली और धन की बंदरबांट का मुद्दा उठाया तो वहां मौजूद अखाड़ा परिषद के मौजूदा अध्यक्ष और निरंजनी अखाड़े के सचिव महंत रवींद्र पुरी (अध्यक्ष मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट) तमतमाकर खड़े हो गए। इस दौरान संत समाज की छवि धूमिल करने वालों को सबक सिखाया जाएगा।
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