
पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हो रहे लगातार हमलों और उत्पीड़न को लेकर गंभीर चिंता जताई गई है। वॉशिंगटन स्थित वॉइस ऑफ पाकिस्तान माइनॉरिटी (VOPM) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि देश में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति “बेहद खराब” होती जा रही है।
संस्था ने सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ ऑर्गनाइज्ड हेट (CSOH) की ताजा रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि ईसाई, हिंदू, अहमदिया और सिख जैसे समुदाय लगातार हिंसा, भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान का विवादास्पद ईशनिंदा कानून इन उत्पीड़नों की जड़ है, जिसका अक्सर दुरुपयोग व्यक्तिगत दुश्मनी और धमकाने के लिए किया जाता है।
जबरन धर्मांतरण और हिंसा के मामले
मानवाधिकार संस्था ने बताया कि पाकिस्तान का सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय, हिंदू, हिंसा और जबरन धर्मांतरण की सबसे ज्यादा मार झेल रहा है।
- 2019 में सिंध के हिंदू शिक्षक नोतन लाल पर ईशनिंदा का झूठा आरोप लगाकर जेल भेजा गया, जिसके बाद दुकानों में लूटपाट, स्कूलों में तोड़फोड़ और मंदिरों पर हमले हुए। हालांकि 2024 में उन्हें बरी कर दिया गया, लेकिन यह घटना सांप्रदायिक हिंसा भड़काने की प्रवृत्ति को दर्शाती है।
- 2020 में खैबर पख्तूनख्वा के करक स्थित एक ऐतिहासिक मंदिर को भीड़ ने आग के हवाले कर दिया, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उसकी सुरक्षा का आदेश दिया था।
नाबालिग लड़कियों पर अत्याचार
रिपोर्ट के मुताबिक, अल्पसंख्यक समुदाय की नाबालिग लड़कियां विशेष रूप से असुरक्षित हैं।
- दिसंबर 2024 में सिंध की 15 वर्षीय हिंदू लड़की काजोल का अपहरण कर जबरन धर्मांतरण और शादी करा दी गई। उसका नाम बदलकर जावेरिया रख दिया गया और उम्र में हेरफेर कर शादी को वैध ठहराया गया।
- मार्च 2024 में पंजाब से 10 वर्षीय ईसाई लड़की लाइबा का अपहरण कर 35 वर्षीय व्यक्ति से जबरन शादी करा दी गई। अदालत ने उसे परिवार को सौंपने के बजाय सरकारी आश्रय गृह भेज दिया।
अल्पसंख्यक पुरुष भी निशाने पर
महिलाओं और बच्चों के अलावा अल्पसंख्यक पुरुष भी हिंसा से सुरक्षित नहीं हैं। मार्च 2025 में पेशावर में हिंदू सफाई कर्मचारी नदीम नाथ को केवल इस्लाम धर्म अपनाने से इनकार करने पर गोली मार दी गई।
“एक गहरी मानवीय त्रासदी”
VOPM ने कहा कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न सिर्फ कानूनी या राजनीतिक मसला नहीं है, बल्कि यह एक गहरी मानवीय त्रासदी है। संस्था के अनुसार, “यह उन परिवारों की कहानी है जो रातोंरात अपने घर और आजीविका खो देते हैं, छोटी बच्चियों का बचपन छीन लिया जाता है और पूरा समुदाय डर और असुरक्षा के साये में जीने को मजबूर होता है।” पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर बढ़ती अंतरराष्ट्रीय चिंता यह सवाल खड़ा करती है कि क्या वहां न्याय और समानता की संवैधानिक गारंटी महज कागजों तक सीमित रह गई है।