इलाहाबाद विश्वविद्यालय

इलाहाबाद विश्वविद्यालय मे फ़ीस वृद्धि समेत कई अन्य मुद्दों को लेकर छात्र दोबारा आंदोलन की तैयारी मे जुटे है। छात्रनेता सत्यम कुशवाहा के मुताबिक इलाहाबाद विश्वविद्यालय एक वक्त में बेहतर और सस्ती आवासीय शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए देश और दुनिया में जाना जाता था। आज इसका आलम यह हो गया है कि देश की मीडिया में यह लगातार चर्चा का विषय बना रहता है जिसके पीछे प्रमुख कारण इसका शिक्षण के क्षेत्र में उन्नति नहीं बल्कि छात्र हितों पर लगातार विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा किए जा रहे हमले तथा उसके खिलाफ छात्रों द्वारा किए जा रहे विरोध प्रदर्शन होते हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा मनमाने तरीके से जिस तरह छात्रों के ऊपर 400% फीस वृद्धि कर उन्हें उच्च शिक्षा व्यवस्था से बेदखल करने की कोशिश की है उसके खिलाफ छात्र लगातार संघर्षरत हैं और विश्वविद्यालय प्रशासन से मांग कर रहे हैं कि 400% फीस वृद्धि के इस तुगलकी फरमान को तत्काल वापस लिया जाए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्र हितों पर किए जा रहे इस हमले की योजना में सबसे पहले छात्र संघ पर ताला जड़ कर शिक्षा पर हमला करना शुरू किया। फीस वृद्धि के खिलाफ बोलने वाले छात्रों को निलंबित करने से लेकर उनका निष्कासन करना और दर्जनभर धाराओं में उनके खिलाफ मुकदमे दर्ज कर देने जैसी क्रूरतम तरीकों का प्रयोग छात्रों के दमन के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन कर रहा है।

उन्होंने कहा की कभी अपने उच्च गुणवत्ता की शिक्षा व्यवस्था के कारण जाना जाने वाला इलाहाबाद विश्वविद्यालय ना सिर्फ उच्च शिक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था बल्कि देश की राजनीतिक व्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान यहां की छात्र राजनीति से रहा है। साइंस फैकल्टी में दर्ज प्रशासनिक सेवाओं से लेकर राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले उन तमाम चेहरों का जिक्र है जिनका नाम लेकर हम इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र गौरवान्वित महसूस करते हैं। वर्तमान विश्वविद्यालय प्रशासन इस विश्वविद्यालय की उसी गरिमामई विरासत के ऊपर लगातार हमले किए जा रहा है। फीस महंगी करके न सिर्फ छात्राओं,दलित पिछड़े और वंचित तबके से आने वाले छात्रों को शिक्षा से बेदखल करने की कोशिश है बल्कि छात्र संघ पर ताला जड़कर विश्वविद्यालय प्रशासन राजनीति की नर्सरी रहे इलाहाबाद विश्वविद्यालय की राजनीतिक विरासत को तहस-नहस कर देना चाहता है। यही कारण है कि विश्वविद्यालय में लोकतंत्र ना होने के कारण इसकी रैंकिंग एनआईआरएफ की रैंकिंग में 200 में भी कहीं दिखाई नहीं देती। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि हम सभी छात्र एकजुट होकर 30 जनवरी को इलाहाबाद विश्वविद्यालय में होने वाली छात्र पंचायत का हिस्सा बने और विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा किए जा रहे इस मनमाने रवैए के खिलाफ पुरजोर विरोध दर्ज कर इस विश्वविद्यालय की शैक्षणिक राजनीतिक विरासत को संजोने के लिए अपनी निम्न मांगों को मनवाने के लिए बाध्य करें।

छात्रों की प्रमुख मांग

1-विश्वविद्यालय में बढ़ाई गई 400% फीस वृद्धि वापस ली जाए तथा हॉस्टलों में प्रवेश के लिए पुराने फीस पर ही एडमिशन लिया जाए।

2-विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्र संघ पर प्रतिबंध हटाया जाए तथा सुचारू रूप से छात्रसंघ बहाल कर इस विद्यालय में लोकतंत्र को बहाल किया जाए।

3-छात्र हितों को लेकर अपनी आवाज रखने वाले छात्र नेताओं पर लगाए गए फर्जी मुकदमों को तत्काल वापस लिया जाए

4-विश्वविद्यालय में छात्रों के पठन-पाठन के लिए पानी शौचालय और सुरक्षा की समुचित व्यवस्था किया जाए।
5- विश्वविद्यालय मे पुस्तकालय सुविधा 24×7 बहाल किया जाए।

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