
हिंदू धर्म में सर्व पितृ अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। इसे महालया अमावस्या भी कहा जाता है। वैदिक मान्यताओं के अनुसार, यह दिन पूर्वजों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने और उनके लिए तर्पण, पिंडदान एवं श्राद्ध कर्म करने के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन पितरों की आत्मा को तृप्त करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है और परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
इस वर्ष सर्व पितृ अमावस्या 21 सितंबर 2025, रविवार को मनाई जाएगी। पंचांग के अनुसार आश्विन मास की अमावस्या तिथि का प्रारंभ 21 सितंबर की रात 12:15 बजे होगा और इसका समापन 22 सितंबर की रात 1:24 बजे होगा।
तर्पण और श्राद्ध के शुभ मुहूर्त
शास्त्रों के अनुसार, अमावस्या पर तर्पण विशेष रूप से अपराह्न काल में करना श्रेष्ठ माना जाता है। इस वर्ष तर्पण के लिए तीन प्रमुख मुहूर्त होंगे:

महत्व और धार्मिक मान्यताएं
सर्व पितृ अमावस्या को पितृ विसर्जनी अमावस्या भी कहा जाता है, क्योंकि इसी दिन पितरों की विदाई होती है। जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है, वे इस दिन विशेष पूजा-पाठ और पिंडदान करके पितृ दोष से मुक्ति पाने का प्रयास करते हैं। पितृ दोष होने पर विवाह में विलंब, संतान प्राप्ति में बाधा, दांपत्य जीवन में अशांति और करियर में अड़चनें आती हैं। इसीलिए इस दिन श्राद्ध, तर्पण और ब्राह्मण भोज कराना अत्यंत शुभ माना जाता है।
पूजा विधि और मंत्र
इस दिन विशेष रूप से पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है, क्योंकि मान्यता है कि इसमें पितरों का वास होता है। तर्पण करते समय मंत्र “ॐ आगच्छन्तु में पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम” का जप करना चाहिए। इसके अलावा पितृ गायत्री मंत्र का जाप करने से पितृ प्रसन्न होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
यह दिन केवल पूर्वजों की स्मृति का ही प्रतीक नहीं है, बल्कि परिवार की समृद्धि और पितरों की कृपा प्राप्त करने का अवसर भी है। मान्यता है कि इस तिथि पर पितृ पुनः पितृलोक की ओर प्रस्थान करते हैं।