
हिंदू धर्म में पूर्णिमा तिथि का विशेष महत्व है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित माना जाता है और इस दिन व्रत रखने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है। पूर्णिमा पर स्नान और दान का विशेष महत्व बताया गया है। इस बार भाद्रपद माह की पूर्णिमा और साल का दूसरा पूर्ण चंद्र ग्रहण एक ही दिन पड़ रहा है, जो भारत में भी दिखाई देगा।
पूर्णिमा तिथि और चंद्र ग्रहण का समय
वैदिक पंचांग के अनुसार, भाद्रपद पूर्णिमा तिथि 6 सितंबर 2025 को रात 1:42 बजे से प्रारंभ होगी और इसका समापन 7 सितंबर को रात 11:39 बजे पर होगा। इस आधार पर पूर्णिमा व्रत 7 सितंबर, रविवार को रखा जाएगा।
इसी दिन पूर्ण चंद्र ग्रहण भी होगा, जो सुबह 8:58 बजे से लेकर रात 1:25 बजे तक रहेगा। ग्रहण शुरू होने से 9 घंटे पहले सूतक काल आरंभ हो जाएगा, यानी 7 सितंबर को सुबह 12:57 बजे से। इसलिए भक्तों को अपनी पूजा और व्रत से संबंधित सभी कार्य सूतक काल से पहले ही कर लेने चाहिए।
चंद्र ग्रहण और व्रत नियम
सूतक काल में मूर्तियों को स्पर्श करना और पूजा करना वर्जित होता है। इसलिए पूर्णिमा व्रत रखने वाले लोग 7 सितंबर की सुबह सूर्योदय से पहले स्नान, दान और पूजा-पाठ पूरा कर लें। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण करना उत्तम माना जाता है।
पूजा विधि
भाद्रपद पूर्णिमा के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके सूर्य देव को अर्घ्य दें और व्रत का संकल्प लें। घर में ईशान कोण पर पीले वस्त्र से ढकी चौकी पर लक्ष्मी-नारायण की प्रतिमा स्थापित करें। अब उन्हें चंदन, रोली, धूप और दीप अर्पित करें। घी का दीपक जलाकर पूर्णिमा व्रत कथा का पाठ करें और आरती करें। भगवान को भोग लगाकर प्रसाद बांटें। पूजा पूरी होने के बाद चंद्रमा को कच्चे दूध से अर्घ्य दें और व्रत का समापन करें।
महत्व
भाद्रपद पूर्णिमा पर स्नान, दान और व्रत का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक भगवान विष्णु और चंद्र देव की पूजा करने से परिवार में सुख-समृद्धि आती है और जीवन में हर कार्य सिद्ध होता है।