
Art Of Desire: भारतीय परंपरा में ‘काम’ शब्द को अक्सर गलत समझा जाता है। लोग इसे केवल वासना या शारीरिक इच्छा से जोड़ते हैं, जबकि शास्त्रों में इसे जीवन के चार पुरुषार्थों में बताया गया है। इसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में शामिल किया गया है। इसका मतलब है कि ‘काम’ जीवन का वह संतुलन है, जो आनंद, सृजन और रिश्तों की निरंतरता के लिए आवश्यक है।
कामसूत्र और कला का महत्व
वात्स्यायन का कामसूत्र अक्सर केवल शारीरिक मुद्राओं की किताब समझा जाता है, जबकि असल में यह जीवन की 64 कलाओं में से एक ‘काम’ कला का विवरण है। इसमें बताया गया है कि ‘काम’ केवल शारीरिक सुख तक सीमित नहीं है। इसमें बातचीत की कला, संगीत, सुंदरता का बोध, सुगंध, वस्त्राभूषण, भावनाओं की समझ और आपसी सामंजस्य भी शामिल हैं। यानी ‘काम’ केवल भोग नहीं, बल्कि मन और आत्मा का संतुलन है।
उपनिषद और गीता की सीख
कठोपनिषद के अनुसार, हमारी इंद्रियां रथ के घोड़े हैं और मन सारथी। यदि मन संयमी है तो जीवन सही दिशा में जाएगा, वरना पतन निश्चित है। गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं कि ‘काम’ ही क्रोध और मोह का कारण बन सकता है। इसलिए संदेश यह है कि काम को नियंत्रित कर धर्म और मोक्ष की ओर बढ़ना चाहिए।
पौराणिक कथाएं
– धार्मिक ग्रंथों में कई उदाहरण मिलते हैं जो ‘काम’ की शक्ति और उसके परिणाम बताते हैं।
– इंद्र अहल्या प्रसंग में वासना से गिर पड़े।
– विश्वामित्र मेनका के आकर्षण में तपस्या खो बैठे।
– शिव ने कामदेव को भस्म कर संयम का आदर्श रखा।
– रावण की वासना उसके विनाश का कारण बनी।
– ये कथाएं बताती हैं कि ‘काम’ शक्ति इतनी प्रबल है कि देवताओं और ऋषियों को भी विचलित कर सकती है।
तंत्र और ज्योतिष का दृष्टिकोण
तंत्र परंपरा में ‘काम’ को दबाने की जगह साधना का माध्यम माना गया है। यहां इसे शिव-शक्ति के मिलन और ब्रह्मांडीय ऊर्जा का अनुभव बताया गया है। ज्योतिष में ‘काम’ से जुड़े ग्रह शुक्र, मंगल, राहु और केतु माने गए हैं।

शुक्र प्रेम और कला का कारक है।
मंगल ऊर्जा और साहस का प्रतीक है।
राहु भ्रम और असामान्य इच्छाओं को दर्शाता है।
केतु विरक्ति और अध्यात्म की ओर ले जाता है।
मनोविज्ञान और विज्ञान
फ्रायड के अनुसार, कामना (libido) ही इंसान की गतिविधियों की जड़ है। दबी हुई वासनाएं अपराध और अवसाद का कारण बन सकती हैं, जबकि संतुलन इसे सृजनशीलता में बदल देता है। आधुनिक विज्ञान बताता है कि डोपामिन और ऑक्सीटोसिन जैसे हार्मोन ‘काम’ को नियंत्रित करते हैं। योग और ध्यान इन्हें संतुलित करने का श्रेष्ठ तरीका हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से संतुलित यौन जीवन तनाव घटाता है, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और दीर्घायु देता है।
निष्कर्ष
‘काम’ शक्ति तीन रूपों में सामने आती है –
केवल भोग तक सीमित हो तो पतन का कारण।
मोह और आसक्ति में फंसे तो बंधन।
संयम और साधना के साथ हो तो आनंद और मोक्ष का सेतु।
इस तरह भारतीय शास्त्र, ज्योतिष और आधुनिक विज्ञान – सभी मानते हैं कि ‘काम’ केवल वासना नहीं, बल्कि जीवन का सौंदर्य और ऊर्जा है। संयम के साथ यह शक्ति आत्मिक उन्नति और सुख का मार्ग बनाती है।