
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बीच तकरार अब किसी से छिपी नहीं हैं। दरअसल, ट्रम्प बार-बार, खुले तौर पर यह दावा कर रहे थे कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों पुराने सैन्य विवाद को सुलझा दिया है। हालांकि ट्रम्प के विवाद सुलझाने वाले दावे में भी तकनीकी पर भी सवाल उठे थे। 17 जून को हुई एक टेलीफोन वार्ता में ट्रम्प ने फिर यही मुद्दा उठाया और कहा कि पाकिस्तान उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित करने जा रहा है। माना जा रहा हैं कि ट्रम्प चाहते थे कि मोदी को भी ऐसा करना चाहिए।
भारत सरकार ने सख्त लहजे में ट्रम्प को स्पष्ट किया कि हालिया युद्धविराम में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं रही। यह फैसला सीधे भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ है। लेकिन ट्रम्प ने मोदी की बातों को खास महत्व नहीं दिया। सूत्रों के मुताबिक, मोदी का इस मुद्दे पर चुप्पी तोड़ना और ट्रम्प की नोबेल उम्मीदवारी पर सहयोग न करना, दोनों नेताओं के रिश्तों में खटास की बड़ी वजह बन गया।

भारत और अमेरिकी संबंध को लेकर ट्रम्प का रवैया मोदी सरकार को असहज करने वाला रहा हैं। जून कॉल के कुछ हफ्तों बाद उन्होंने आयात पर 25% शुल्क की घोषणा कर दी और बाद में रूस से तेल खरीदने पर भारत पर अतिरिक्त 25% शुल्क भी लगा दिया। अमेरिका ने भारत पर 50% टैरिफ अब भारतीय सामानों पर लागू हो चुका हैं।
NYT के मुताबिक कभी मोदी को सच्चा दोस्त कहने वाले ट्रम्प ने अब भारत दौरे की अपनी योजना भी रद्द कर दी है। भारत में इस कदम को “गुंडागर्दी” तक कहा गया। महाराष्ट्र में हाल ही में एक त्योहार में ट्रम्प का पुतला जलाया गया, जिस पर “पीठ में छुरा घोंपने वाला” लिखा था।
जानकारों के मुताबिक, मोदी के लिए पाकिस्तान मुद्दे पर अमेरिकी मध्यस्थता स्वीकार करना राजनीतिक रूप से असंभव है। भारत की दशकों पुरानी नीति रही है कि पाकिस्तान विवाद केवल द्विपक्षीय है, तीसरे पक्ष की कोई जगह नहीं, भारत सरकार ने कई अहम बयानों में इस बात का भी जिक्र किया जा चुका हैं।
ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन की शोधकर्ता तन्वी मदान ने कहा,
“मोदी द्वारा अमेरिकी दबाव में युद्धविराम स्वीकार करना न केवल उनके व्यक्तित्व के खिलाफ है, बल्कि भारतीय कूटनीति की परंपरा के भी विरुद्ध है।”
ट्रम्प प्रशासन भले ही दावा करे की भारत पर शुल्क इसलिए लगाया गया क्योंकि वह रूसी तेल खरीद रहा है और उसका बाज़ार संरक्षणवादी है। लेकिन जानकारों का मानना है कि यह कदम असल में भारत को झुकाने का दबाव है। जानकार इसे आर्थिक नीति नहीं बल्कि भारत पर दबाव बनाने की कोशिश मानते हैं। चीन जो रूस का सबसे बड़ा तेल आयातक है, उस पर ऐसे प्रतिबंध नहीं लगाए गए। इससे भारत की नाराज़गी और बढ़ी है।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद मई में कश्मीर में भारत-पाकिस्तान संघर्ष के दौरान ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर पूर्ण और तात्कालिक युद्धविराम का दावा किया। जबकि विदेश सचिव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसका कोई ज़िक्र तक नहीं किया। एक भारतीय अधिकारी ने पत्रकारों से कहा, “आप हम पर विश्वास करेंगे या ट्रम्प पर?”
जून की कॉल के बाद जब ट्रम्प ने कई बार मोदी से संपर्क साधने की कोशिश की, तो भारतीय पक्ष ने चुप्पी साध ली। भारतीय अधिकारियों को डर था कि ट्रम्प सोशल मीडिया पर अपनी मर्ज़ी से बयानबाज़ी करेंगे।