
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से अब तक दुनिया के कई हिस्सों में युद्ध और संघर्ष रुकवाए हैं। व्हाइट हाउस ने यहां तक कह दिया है कि अब ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार मिलना चाहिए।
18 अगस्त को व्हाइट हाउस में ट्रंप ने कहा था, “मैंने छह युद्ध खत्म कर दिए हैं। इनमें से किसी भी समझौते में मैंने ‘युद्धविराम’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया।” अगले ही दिन उन्होंने संख्या बढ़ाकर सात युद्ध कर दी।
हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से ज्यादातर समझौते सिर्फ अस्थायी युद्धविराम साबित हुए हैं और कहीं भी स्थायी शांति स्थापित नहीं हो पाई है।
इसराइल–ईरान संघर्ष
13 जून 2025 को इसराइल और ईरान के बीच 12 दिन तक लड़ाई चली। ट्रंप ने दावा किया कि अमेरिकी हस्तक्षेप के बाद युद्धविराम हुआ। हालांकि, विश्लेषकों का कहना है कि यह सिर्फ अस्थायी विराम था, स्थायी शांति नहीं।
भारत–पाकिस्तान तनाव
22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकी हमले के बाद मई में दोनों देशों में चार दिन तक संघर्ष चला।
ट्रंप ने कहा कि उनकी मध्यस्थता से “पूर्ण युद्धविराम” हुआ। पाकिस्तान ने धन्यवाद भी दिया।
लेकिन भारत ने साफ कहा कि यह समझौता दोनों सेनाओं के बीच मौजूद चैनलों से हुआ, किसी तीसरे पक्ष की भूमिका नहीं थी।
रवांडा–डीआर कांगो
वॉशिंगटन में जून में शांति समझौता हुआ, लेकिन जल्द ही दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर उल्लंघन का आरोप लगा दिया। विद्रोही गुट एम23 ने भी वार्ता से हटने की धमकी दी।
थाईलैंड–कंबोडिया
जुलाई में सीमा विवाद को लेकर संघर्ष भड़का। ट्रंप के फोन कॉल के बाद दोनों देशों ने युद्धविराम पर सहमति जताई और 7 अगस्त को तनाव घटाने का समझौता किया।
आर्मेनिया–अज़रबैजान
8 अगस्त को व्हाइट हाउस में दोनों देशों ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। नेताओं ने ट्रंप की सराहना की और उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार देने की मांग की।
मिस्र–इथियोपिया विवाद
नील नदी पर बने ग्रैंड इथियोपियन रेनेसां डैम को लेकर तनाव जारी है। ट्रंप ने दावा किया कि वह इस विवाद को भी सुलझा देंगे, लेकिन अब तक कोई औपचारिक समझौता नहीं हो पाया।
सर्बिया–कोसोवो
ट्रंप का कहना है कि उन्होंने इन दोनों देशों के बीच बड़ा युद्ध रोक दिया। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यहां कोई युद्ध शुरू ही नहीं हुआ था।
डोनाल्ड ट्रंप लगातार अपने “शांति प्रयासों” का प्रचार कर रहे हैं। पाकिस्तान और अज़रबैजान जैसे देशों ने उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार देने की मांग भी की है। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये कदम स्थायी शांति की ओर बढ़ते हैं या सिर्फ़ अस्थायी युद्धविराम हैं?